हम किताबों में खो जाते है। और ऐसा कहते है कि किताब में हम खुद को खोज भी लेते है।
पाठ्य पुस्तको के संदर्भ में तो यह बात और भी सही ठहरती है क्योंकि यदि हम सामान्य पुस्तकों की बात करें तो वे प्राय: किसी एक लेखक अथवा दो-तीन सह-लेखको के अनुभवों व अनुसंधान का परिणाम होती है। किन्तु यदि बात करें हम आपके पाठ्यक्रम पर आधारित इन पाठ्य पुस्तकों की, तो ऐसी एक पुस्तक की रचना में उसकी मूल परिक्लपना से लेकर उस पर अनुसंसधान, लेखन, उसके त्रुटि-सुधार, संपादन, पुनरीक्षण, छपाई और जिल्द बांधने से लेकर उसके वितरण तक अनेको कुशल व्यक्तियों का योगदान उनमें रहता है। तो आप यह कल्पना सहज ही कर सकते हैं कि पाठ्य पुस्तक को आपके हाथो तक पहुंचाने के वास्ते कितने अनुभवी अध्यापको, विद्वानो तथा अन्य व्यवसाय कुशाल व्यक्तियों ने योगदान दिया होगा।
पुस्तक केवल कुछ तथ्यों तथा अभ्यस प्रश्नो का संग्रह मात्र ही नही है, बल्कि यह आपकी सफलता की सीढ़ी भी बन सकती है। और यदि अपने मन की बात कहूं, तो पुस्तक का हर पृष्ट स्वयं मे एक अनुभव है, एक यात्रा है जो आपके जीवन की वृहत यात्रा को और भी समृथ्द करेगा।
अंग्रेज़ लेखक फ्रांसिस बेकन ने लिखा थाः
कुछ पुस्तकें सिर्फ चखने लेने भर के लिए होती है, कुछ निगल जाने के लिए और बहुत कम पुस्तकें एसी होती है जिन्हें आराम रस लेते हुए, आनंदपूर्वक पचाया जाए। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ पुस्तको के अच्छे अंश ही पढ़ने योग्य होते है, पूरी पुस्तक नहीं। कुछ अन्य पुस्तकें होती है जिन्हें पूरा पढ़ा जाए, वो भी पूरे ध्यान और निष्टा के साथ। और आप मेरा विश्वास करें ये जो पाठ्य पुस्तक होती है। इसी तीसरी श्रेणी की पुस्तकों में से है जिन्हे बड़ा आनंद लेते हुए अंतिम वाक्य तक पढ़ा जाना चाहिए।
इसलिए, पाठ्य पुस्तक को सिर्फ पढ़ो नही, इसमे दिए अनुभवो को जियो, उन्हे महसूस करो और उनका आनंद लो।
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