Sunday, 9 October 2022

कितने फसाद होते

 समंदर सारे "शारब" होते तो

सोचो कितने फसाद होते 

हकीकत सारे "ख्वाब" होते तो

सोचो कितने फसाद होते

किसी के "दिल" में क्या छुपा है

ये तो रब जानता है

दिल सारे "बेनकाब" होते तो

सोचो कितने फसाद होते

थी "खामोशी" फितरत हमारी

तभी तो बरसों निभा गई

हमारे "मुंह" में भी जवाब होते तो

सोचो कितने फसाद होते

हम "अच्छे" थे पर

लोगो की नजरों में सदा बुरे रहे

कहीं हम सच में "खराब" होते तो

सोचो कितने फसाद होते

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